प्रांतीय राज्यों का युग

500 ई. से 700 ई तक

खाली स्थानों की पूर्ति कीजिए

1 ठोस चट्टानों को काटकर मंदिर बनवाने की कला की शुरूआत महेन्द्रवर्मन ने की थी।
2 पल्लवों के काल में काँची षिक्षा का प्रमुख केन्द्र था।
3 पल्लव राजा महेन्द्र वर्मन लेखक और नाटककार भी था।
4 पुलकेषन द्वितीय ने महेन्द्र वर्मन को युद्ध में पराजित किया था।
5 चालुक्य नरेष नृसिंहवर्मन ने पुलकेषन द्वितीय को युद्ध में पराजित किया था।

इसमें दी गई सामग्रियों का छ भाषाओं में अनुवाद प्राप्त कर सकते हैं । इससे अंग्रेजी माध्यमों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को सुविधा होगी। साथ ही साथ दूसरी भारतीय भाषाओं में भी इसे अनुवाद कर समझा जा सकता है।इसके लिए ऊपर टॉप पर भारत के राष्ट्रीय झंडे के आईकन के साथ भाषा का चुनाव कर इसे दिए गए भाषाओं में अनुवाद कर सकते हैं।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए प्रश्न
1. हर्षवर्धन का राज्य कहाँ से कहाँ तक फैला था?
उत्तर- हर्षवर्धन का साम्राज्य पंजाब से उड़ीसा तक फैला था । उसने आगे चलकर कन्नौज       को अपनी राजधानी बनाया, क्योंकि कन्नौज उसके राज्य के बीच में पड़ता था।

प्रश्न 2. ह्वेनसांग ने भारतीय समाज के बारे में क्या कहा है?

उत्तर -ह्वेनसांग ने भारतीय समाज के बारे में कहा है- भारत में उस वक्त बौद्ध धर्म उतना लोकप्रिय नहीं था जितना कि वह समझता था। वह यह भी कहता है कि उस वक्त भारत में अछूतों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता था।

प्रश्न 3. हर्ष के धार्मिक कार्यों का वर्णन कीजिए।

उत्तर- हर्ष ने अपने उत्तरकालीन जीवन में बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था, लेकिन वह एक धर्म-सहिष्णु सम्राट भी था जो विभिन्न धर्माे एवं संप्रदायों का सम्मान करता था। हर्ष शिव का उपासक था। हर्ष ने बारी-बारी से बुद्ध, सूर्य तथा शिव की प्रतिमाओं की पूजा की थी। प्रयाग के धार्मिक समारोह में हर्ष दीन-दुखियों एवं अनाथों में प्रभूत दान वितरित किया करता था। यहाँ तक कि वह अपने बहुमूल्य वस्त्रों एवं व्यक्तिगत आभूषणों तक को दान दिया करता था।

प्रश्न 4. चालुक्यों का व्यापार किन-किन क्षेत्रों से होता था?
उत्तर- चालुक्यों की राजधानी वातापी काफी समृद्ध नगर थी। पश्चिम में ईरान, अरब तथा लाल सागर के बन्दरगाहों से तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के राज्यों से यहाँ के व्यापारियों के पुराने व्यापारिक सम्बन्ध थे।
(स) संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए

1. आल्वार एवं नायनार 2. ह्वेनसांग ।

उत्तर- 1. आल्वार एवं नायनार-दक्षिण भारत में एक ऐसा समुदाय उभरा जिसका विश्वास था कि धर्म ईश्वर, शिव या विष्णु की व्यक्तिगत उपासना है। यही विचारधारा आगे चलकर श्भक्तिश् के नाम से प्रसिद्ध हुई। इसमें मुख्य रूप से समाज के सामान्य वर्ग के लोग शामिल थे। ये लोग जगह-जगह शिव या विष्णु के भजन गाते हुए घूमते थे। इनके भजन जनसाधारण की भाषा (तमिल) में लिखे होते थे। इनमें विष्णु के उपासक आल्वार के नाम से जाने जाते थे तथा शिव के उपासक नायनार के नाम से। दक्षिण भारत के समाज में इनका प्रभाव था।

उत्तर – 2. ह्वेनसांग -ह्वेनसांग एक चीनी बौद्ध यात्री था। वह 630 ई. में भारत यात्रा पर आया था। शिक्षा के प्रति उसका लगाव इतना था कि बहुत-सी मुसीबतों को झेलते हुए, मरुस्थलों को पार करते हुए ऽ नालन्दा बिहार पहुँचकर बौद्ध ग्रन्थों का अध्ययन किया। हर्षकाल में नालन्दा बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केन्द्र था। 5 वर्ष भारत में रहने के बाद ह्वेनसांग अपने देश वापस चला गया और वहाँ उसने भारत-यात्रा का वृत्तान्त लिखा । ह्वेनसांग ने छत्तीसगढ़ की यात्रा की थी, उसने दक्षिण कौशल के प्रमुख शहर सिरपुर (श्रीपुर) को तत्कालीन बौद्ध शिक्षण का केन्द्र बताया है।

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