स्तुति
शुक्लां ब्रम्ह-विचार-सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीम्,
वीणपुस्तक-धरिणीमभयदां, जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्तेस्फाटिकमालिकां विदधतीं, पद्मासने संस्थिताम्,
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं, बुद्धिप्रदां शारदाम्।।
हिन्दी अनुवाद :- श्वेत वर्ण वाल, ब्रम्ह विचार-सार रूपी परम तत्व से युक्त, आदिरूपा, संसार में व्याप्त रहने वाली, वीणा और पुस्तक धारण करने वाली, अभय प्रदान करने वाली, जड़ता (अज्ञानता) रूपी अंधकार को दूर करने वाली, हाथों में शुभ्र मणियों की मालाा धारण करने वाली , कमल रूपी आसन में विराजमान रहने वाली एवं बुद्धि प्रदान करने वाली उसपरमेश्वरी भगवती देवी को (मै ) प्रणाम करता हूँ ।
अर्थः
शुक्लाम् श्वेतवर्ण
सारपरमामाद्वाम् – सार-परमाम्आद्यां सार यपी परम तत्व से समन्वित
जगद्व्यापिनीम् – संसार में व्याप्त रहने वाली
हस्तेस्फाटिक – हाथों में स्फटिक
मालिकाम्- माला
पद्मासने- कमल रूपी आसन में
बुद्धिप्रदाम् – बुद्धि प्रदान करने वाली
शारदाम् – सरस्वती देवी को
जड्यान्धकारापहाम् – जड़ता रूपी अन्धकार को दूर करने वाली
संस्थिताम् – विराजमान रहने वाली
संवादः (वार्तालाप/बातचीत )
1.1. हट्टवार्ताः (गीता गच्छति हट्टम) बाजार में वार्तालाप (गीता बाजार जाती है)
शब्दार्थः
त्वम् -तुम
कुत्र -कहाँ
संवाद- बातचीत/ वार्तालाप
हट्टम प्रति – बाजार की ओर या तरफ
किमर्थम – किसलिए / क्यों
शाकम् – शाक/ साग सब्जि
क्रेतम – खरीदने के लिए
अधुना- अब
गच्छामि -जाता हूँ
मोहनः गीते ! त्वं कुत्र गच्छसि ?
मोहनः गीते ! तुम कहाँ जा रही हो?
गीताः मोहन! अहं हट्टं प्रति गच्छामि।
गीताः मोहन! मै बाजार की तरफ जा रही हँ।
मोहनः गीते ! किमर्थम्?
मोहनः गीता! किसलिए
गीताः मोहन! शाकंफलं च क्रेतुम्। अधुना तवं कुत्र गच्छसि।
गीताः मोहन् शाकसब्जि और फल खरीदने के लिए। अभी तुम कहाँ जा रहे हो?
मोहनः गीते। अधुना अहं गृहं प्रति गच्छामि
मोहनः गीते मै अभी घर की तरफ जा रहा हूँ