उद्योग एक परिचय An Introduction to Industry

अभ्यास के प्रश्न
1. खाली स्थान को भरिए
1. भारत प्रधान कृषि प्रधान देश है।
2 उद्योग धंधे मानव, मशीन तथा विद्युत से संचालित होता है।
3. कुंभकार के लिए कच्चा माल मिट्टी है ।
4. मिट्टी से बने सजावटी सामान को टेराकोटा कहते हैं।
5. मिट्टी का घड़ा, सुराही बनाना कुम्भकार कहलाता है।
6. ताना पर लगने वाला धागा कोरिया धागा कहलाता है।
7. रेशम के कीड़े के शहतूत पेड़ पर पाले जाते हैं।
8. कोकून को उबालने से पहले इस पर पहटालपेटा जाता है।
2. प्रश्नों के उत्तर दीजिए

1. कच्चा माल किसे कहते हैं?
उत्तरः उद्योग में कई वस्तुएँ तैयार करने कलिए जिन बस्तुओं का उपयोग होता है उन्हें कच्चा माल कहते हैं।

2. दस्तकारी किसे कहते हैं?
उत्तरः लोगों के द्वारा बनाई जाने वाली सामानों को दस्तकारी कहते हैं।

3. बाजार किसे कहते हैं?
उत्तरः बाजार उन जगहों को कहते है जहाँ उत्पादों की खरीदी व बिक्री उचित दामों पर की जाती है । यह सामूहिक या एकल होती हैं । यह किसी एक निश्चित दिन व निश्चित स्थान पर लगती है । इन्हीं जगहों को बाजार कहते हैं।

4. नदी के किनारे की चिकनी मिट्टी से ही बर्तन व अन्य सामान क्यों बनाए जाते हैं?

उत्तरः

चिकनी मिट्टी चूँकि मुलायम होती है , इसलिए कुम्भकार उसे अपनी पसंद की आकृति सरलतापूर्वक दे सकता है। उसमें सूखने के बाद भी दरार नहीं आता अर्थात् बना हुआ सामान फटता नहीं है । चिकनी मिट्टी में रंग – रोगन करना भी आसान होता है , तथा रंग अधिक आकर्षक ढंग से उभरते हैं । इसलिए कुम्भकार काँप मिट्टी का उपयोग बर्तन एवं अन्य सामान बनाने में करते हैं ।





5 मिट्टी के बर्तन को बेचने के लिए क्या तरीके अपनाए जाते हैं।
उत्तरः 1 ) स्वयं कुम्हार द्वारा– कुम्हार स्वयं अपने बनाए हुए बर्तनों व सामानों को निकटतम बाजार में ले जाकर बेचते हैं । इसमें सारा मुनाफा कुम्हार को ही होता है । आसपास के लोग कुम्भकार के घर पर ही आकर अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ ले जाते हैं ।

( 2 ) बिचौलियों द्वारा

बाजार में कुछ फूटकर विक्रेता होते हैं , जो स्थाई रूप से दुकान लगाते है , वे इन कुम्भकारों से आकर मिट्टी के बर्तन व अन्य सामग्री खरीद कर ले जाते हैं । यह स्मरणीय है कि बिचौलिए बर्तनों के कम दाम देते हैं क्योंकि वे इसमें अपना मुनाफा और सामान को लाने – ले जाने का दाम भी जोड़ते हैं । इस तरीके में कुम्भकार को कम लाभ होता है । हाँ , इतना अवश्य है कि उसे बाजार की खाक नहीं छाननी पड़ती , घर बैठे ही सामान बिक जाते हैं ।

( 3 ) सरकार द्वारा

सरकार द्वारा भी इन सामानों की बिकवाली के लिए समय – समय पर प्रदर्शनी , जगार मेला महोत्सव आदि का आयोजन किया जाता है , जिसमें इन सामग्रियों के अच्छे दाम मिल जाते हैं । छत्तीसगढ़ राज्य मिट्टी के सामान एवं इसी प्रकार की प्रदर्शनी के लिए प्रसिद्ध है ।

6 कुंभकार के काम में किस-किस तरह के परिवर्तन आए हैं? अपने शब्दों में समझाईए।

उत्तरः अब कुम्हार प्रशिक्षण प्राप्त करके नयी कलाकृतियाँ बनाने लगे हैं । वे अब अत्याधुनिक यंत्रों के सहयोग से उत्पादन करते हैं। परम्परागत बर्तन और खिलौनों के अतिरिक्त सजावट के आकर्षक वस्तुओं के निर्माण से उन्हें अत्यधिक लाभ हो रहा है । शहरों में भी उनके द्वारा निर्मित साजोसमान की विशेष माँग है । अब यह एक उद्योग का रूप ले चुका है , जिसे टेराकोटा उद्योग कहते हैं । इनके द्वारा निर्मित – हण्डी , पोरा , बैल , कलात्मक एवं सजावटी सामान , गमला , झाड़ – फानूस , लैम्प , घंटी , घोड़ा , हाथी , हिरण , मुखौटे आदि , जगार उत्सव व अन्य हाट बाजारों में खूब बिकने लगे हैं ।

7 बुनकर परिवार को कोसा फल कहाँ से प्राप्त होता है?

उत्तरः बुनकर परिवार कोसे के लिए शहतूत तथा इसी तरह के अन्य पेड़ों पर रेशम के कीड़े पालते हैं । कीड़ों की इल्लियाँ शहतूत के पत्तों को खाकर अपने चारों ओर अपनी लार से धागों के रूप में एक खोल तैयार करती हैं । इस खोल को कोसा फल या कोकून कहते हैं । इसी कोकून से रेशम के धागे तैयार करते हैं । ठेकेदारी पद्धति में ठेकेदार द्वारा कच्चा माल कोसा व अन्य सामग्री उपलब्ध कराया जाता है । भारत सरकार रेष्म विभाग भी कोसा फल प्राप्त करने में आर्थिक मदद करता है।

8 बुनकर कोसे का कपड़ा किस प्रकार बनाता है?

उत्तरः बुनकर कटे-फटे कोसा फल को छांटकर अलग कर अच्छे कोसा फल के ऊपर पट्टा लपेटते हैं ताकि कोसा फल उबालते समय न फटे। दो – तीन घंटे उबालने के बाद उसे साफ पानी से इतना धोया जाता है जिससे उसका चिपचिपा पदार्थ पूरा निकल जाए । कोसे को सुखाकर उसे गीले कपड़े में लपेटकर रख दिया जाता है । धागा निकालने का काम शुरू होता है। पेस्ट को निकालने के बाद 5 कोसे को एक प्लेट में रखकर , एक – एक धागा निकाली जाती है । बुनकर और उसके परिवार के लोग अपनी जांघ पर रखकर रगड़कर नटवा पर धागा लपेटते हैं । यह काम आमतौर पर महिलाएं ही करती हैं। इसके बाद नटवे पर लपेटे धागे को चरखे की मदद से बॉबिन पर चढ़ाया गया । उसके बाद ताना पर धागा बाँधने का काम शुरू किया जाता है। ये धागे 35 से 37 मीटर लम्बे धागे होते हैं जिसे बाँधने में एक दिन से अधिक का समय लग जाता है। बुनाई के समय एक दूसरा धाग चौड़े भाग में लगता है इसे बाना कहते हैं । ताने-बाने की सहायता से कपड़े की बुनाई होती है।

9 छोटा व्यापारी क्या -क्या काम करता है?

उत्तरः छोटे व्यापारी बुनकरों से बुने हुए कपड़ा लेते हैं तथा उनका हिसाब-किताब रखते हैं । आवश्यकता पड़ने पर उन्हें नई डिज़ाईनें बताई जाती है तथा आगे के आर्डर के मुताबिक उन्हें कोसा फल कोरियाई धागा दिया जाता है। छोटा व्यापारी बड़े व्यापारी को आर्डर के अनुसार कपड़े उपलब्ध कराता है। इसी प्रकार बड़े शहरों के बाजारों में कोसा कपड़े ऊँचे दामों में बिकते हैं।

10 यदि कोसा उद्योग से छोटा व्यापारी हट जाए तो बुनकरों के काम की क्या -क्या विशेषताएँ हैं?

उत्तरः छोटे व्यापारी बड़े व्यापारी और बुनकरों के बीच की कड़ी है । वह दोनों को लाभ पहुँचाता है। । यदि बुनकरों का सीधा सम्पर्क बड़े व्यापारियों से होता है तो इससे दोनों पक्ष को लाभ होगा । बुनकरों को उसी काम का अधिक पारिश्रमिक मिल जायेगा और उनका उत्साह बढ़ेगा और उत्पादन में भी वृद्धि होगी। अधिक आय से बुनकर आर्थिक रूप से सक्षम हो सकेंगे इससे उनकी कार्यक्षमता व गुणवत्ता में वृद्धि होगी ।

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