शिवाजी ने दिया औरंगजेब को चकमा

17 अगस्त 1666 में शिवाजी महाराज ने औरंगजेब की सुरक्षा व्यवस्था को चकमा देकर आगरा की कैद से मुक्ति पा ली थी और 91 दिन की यात्रा कर महाराष्ट्र के रायगढ़ किले में पहुंच गए थे। विभिन्न इतिहासकारों के दिए विवरण से हमें पता चलता है कि कितना बड़ा काम था ,इतिहासकार जदुनाथ सरकार अपनी किताब Shivaji and his times में लिखते हैं, जय सिंह ने शिवाजी को यह उम्मीद दिलाई कि हो सकता है कि औरंगजेब से मुलाकात के बाद कि वो दक्कन में उन्हें अपना वायसराय बना दें और बीजापुर और गोलकुंडापर कब्जा करने के लिए उनके नेतृत्व में एक फौज भेजें शिवाजी अपनी माँ जीजाबाई को राज्य का संरक्षक बनाकर 5 मार्च, 1666 को औरंगजेब से मिलने आगरा के लिए निकल पड़े।

9 मई, 1666 को शिवाजी आगरा के बाहरी इलाके में पहुंच चुके थे, जहाँ उस समय औरंगजेब का दरबार लगा हुआ था.

तय हुआ कि 12 मई को उनकी औरंगजेब से मुलाकात कराई जाएगी। राम सिंह ने शिवाजी को उनके बेटे संभाजी और 10 अर्दलियों के साथ दीवाने आम में औरंगजेब के सामने पेश किया । मराठा प्रमुख की तरफ से औरंगजेब को 2,000 सोने की मोहरें जर और 6,000 रुपये निसार के तौर पर पेश किए गए। शिवाजी ने औरंगजेब के सिंहासन के पास जाकर उन्हें तीन बार सलाम किया। एक क्षण के लिए दरबार में सन्नाटा छा गया. औरंगजेब ने सिर हिलाकर शिवाजी के उपहार स्वीकार किए. फिर बादशाह ने अपने एक सहायक के कान में कुछ कहा. वो उन्हें उस जगह पर ले गया जो तीसरे दर्जे के मनसबदारों के लिए पहले से ही नियत थी। दरबार की कार्यवाही बदस्तूर चलने लगी. शिवाजी को इस तरह के रूखे स्वागत की उम्मीद नहीं थी । जदुनाथ सरकार लिखते हैं कि शिवाजी को ये बात पसंद नहीं आई कि औरंगजेब ने आगरा के बाहर उनका स्वागत करने के लिए राम सिंह और मुखलिस खाँ जैसे मामूली अफसर भेजे ।

इसे भी पढ़िए छत्रपति शिवाजी महाराज

दरबार में सिर झुकाने के बावजूद शिवाजी के लिए न तो कोई अच्छा शब्द कहा गया और न ही उन्हें कोई उपहार दिया गया। उन्हें साधारण मनसबदारों के बीच कई पंक्तियाँ पीछे खड़ा करवा दिया गया, जहाँ से उन्हें औरंगजेब दिखाई तक नहीं पड़ रहे थे.

तब तक शिवाजी का पारा सातवें आसमान तक पहुंच चुका था। उन्होंने राम सिंह से पूछा कि उन्हें किन लोगों के बीच खड़ा किया गया है?

जब राम सिंह ने बताया कि वो पाँच हजारी मनसबदारों के बीच खड़े हैं तो शिवाजी चिल्लाए, मेरा सात साल का लड़का और मेरा नौकर नेताजी तक पाँच हजारी है. बादशाह की इतनी सेवा करने और इतनी दूर से आगरा आने का बावजूद मुझे इस लायक समझा गया है?

शेर जंगल का जानवर है. वो यहाँ की गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है

फिर शिवाजी ने पूछा, मेरे आगे कौन महानुभाव खड़े हैं? जब राम सिंह ने बताया कि वो राजा राय सिंह सिसोदिया हैं तो शिवाजी चिल्लाकर बोले, राय सिंह राजा जय सिंह के अदना मातहत हैं. क्या मुझे उनकी श्रेणी में रखा गया है?

औरंगजेब के पहले 10 वर्षों के शासन पर लिखी किताब आलमगीर नामा में मोहम्मद काजिम लिखते हैं, अपने अपमान से नाराज होकर शिवाजी राम सिंह से ऊँचे स्वर में बात करने लगे. दरबार के कायदे कानून का पालन न हो पाने से परेशान राम सिंह ने शिवाजी को चुप कराने की कोशिश की लेकिन वो कामयाब नहीं हुए.शिवाजी की तेज आवाज सुन कर औरंगजेब ने पूछा कि यह शोर कैसा है? इस पर राम सिंह ने कूटनीतिक जवाब दिया, शेर जंगल का जानवर है. वो यहाँ की गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है और बीमार पड़ गया है.

उन्होंने औरंगजेब से माफी माँगते हुए कहा कि दक्कन से आए इन महानुभाव को शाही दरबार के क़ायदे-कानून नहीं पता हैं.

इस पर औरंगजेब ने कहा कि शिवाजी को बगल के कमरे में ले जाकर उनके ऊपर गुलाब जल का छिड़काव किया जाए. जब वो ठीक हो जाएं तो उन्हें दरबार ख़त्म होने का इंतेजार किए बिना सीधे उनके निवास स्थान पर पहुंचा दिया जाए.

राम सिंह को हुक्म हुआ कि वो शिवाजी को आगरा शहर की चारदीवारी से बाहर जयपुर सराय में ठहराएं.

शिवाजी द ग्रेट रेबेल

जैसे ही शिवाजी जयपुर निवास पहुंचे, घुड़सवारों की एक टुकड़ी ने निवास को चारों तरफ से घेर लिया. थोड़ी देर में कुछ पैदल सैनिक भी वहाँ पहुंच गए. उन्होंने अपनी तोप का मुँह भवन के हर दरवाजे की तरफ मोड़ दिया. जब कुछ दिन बीत गए और सैनिक चुपचाप शिवाजी की निगरानी करते रहे तो यह साफ हो गया कि औरंगजेब की मंशा शिवाजी को मारने की नहीं थी.

डेनिस किंकेड अपनी किताब शिवाजी द ग्रेट रेबेल में लिखते हैं, हाँलाकि शिवाजी को वो भवन छोड़ने की मनाही थी ,जहाँ वो रह रहे थे लेकिन तब भी औरंगजेब उन्हें गाहेबगाहे विनम्र संदेश भेजते रहे.

उन्होंने उनके लिए फलों की टोकरियाँ भी भिजवाईं गई. शिवाजी ने प्रधान वजीर उमदाउल मुल्क को संदेश भिजवाया कि बादशाह ने उन्हें सुरक्षित वापस भेजने का वादा किया था लेकिन उसका कुछ असर नहीं हुआ। धीरे-धीरे शिवाजी को ये एहसास होने लगा कि औरंगजेब उन्हें भड़काना चाह रहे हैं ताकि वो कुछ ऐसा काम करें जिससे उन्हें मारने का बहाना मिल जाए

शिवाजी के व्यवहार में बदलाव

भवन की निगरानी कर रहे सैनिकों ने अचानक महसूस किया कि शिवाजी के व्यवहार में परिवर्तन आना शुरू हो गया. वो खुश दिखाई देने लगे.
वो उनकी सुरक्षा में लगे सैनिकों के साथ हँसी-मजाक करने लगे । उन्होंने सैनिक अफसरों को कई उपहार भिजवाए और उनको ये कहते सुना गया कि आगरा का मौसम उन्हें बहुत रास आ रहा है। शिवाजी ने ये भी कहा कि वो बादशाह के बहुत एहसानमंद हैं कि वो उन के लिए फल और मिठाइयाँ भिजवा रहे हैं. शासन की आपाधापी से दूर उन्हें आगरा जैसे सुसंस्कृत शहर में रह कर बहुत मजा आ रहा है.

इस बीच औरंगजेब के जासूस उन पर दिन-रात नजर रखे हुए थे। उन्होंने बादशाह तक ख़बर भिजवाई कि शिवाजी बहुत संतुष्ट नजर आते हैं.

डेनिस किंकेड लिखते हैं, औरंगजेब के आश्वस्त करने के लिए शिवाजी ने उन तक संदेश भिजवा कर पूछा कि क्या उनकी पत्नी और माँ उनके पास आ कर रह सकते हैं? औरंगजेब इसके लिए राजी हो गए. उन्होंने सोचा कि कोई शख़्स अपनी महिलाओं को बंधक के रूप में रख कर निकल भागने का ख़याल तो अपने मन में नहीं ही लाएगा. यह सही है कि शाही अनुमति मिलने के बावजूद शिवाजी के परिवार की महिलाएं उनके पास नहीं पहुंची.कारण बताया गया कि शायद उस इलाके में बारिश की वजह से वो इतना लंबा सफर नहीं कर पा रही हैं.

कुछ दिन बाद शिवाजी ने यह पेशकश कर दी कि वो अपने साथ आए मराठा घुड़सवारों को वापस भेजना चाहते हैं. बादशाह स्वयं उन सैनिकों से पीछा छुड़ाना चाह रहे थे. वो यह जान कर खुश हो गए कि शिवाजी ने ख़ुद यह इच्छा प्रकट की है.

शिवाजी ने बहाना किया कि वो बीमार हैं. मुगल पहरेदारों को उनकी कराहें सुनाई देने लगी. अपने को ठीक करने के प्रयास में वो अपने निवास के बाहर ब्राह्मणों और साधुओं को हर शाम मिठाइयाँ और फल भिजवाने लगे.

बाहर तैनात सैनिकों ने कुछ दिनों तक तो बाहर जाने वाले सामान की तलाशी ली लेकिन फिर उन्होंने उसकी तरफ ध्यान देना बंद कर दिया.

19 अगस्त 1666 का वह दिन

जदुनाथ सरकार अपनी किताब शिवाजी एंड हिज टाइम्स में लिखते हैं, 19 अगस्त 1666 को शिवाजी ने बाहर तैनात सैनिकों को कहला भेजा कि वो बहुत बीमार हैं और बिस्तर पर लेटे हुए हैं। उनके आराम में व्यवधान न डाला जाए और किसी को अंदर न भेजा जाए.
दूसरी तरफ शिवाजी के सौतेले भाई हीरोजी फरजाँद जिनकी शक्ल उनसे मिलती जुलती थी, उनके कपड़े और उनका मोतियों का हार पहन कर उनकी पलंग पर लेट गए. उन्होंने कंबल से अपने सारे शरीर को ढ़क लिया. उनका सिर्फ एक हाथ दिखाई देता रहा, जिसमें उन्होंने शिवाजी के सोने के कड़े पहन रखे थे.

शिवाजी और उनके बेटे संभाजी फलों की एक टोकरी में बैठे, जिसे मजदूर बाँस के सहारे कंधे पर उठाकर भवन से बाहर ले आए. निगरानी कर रहे सैनिकों ने उन टोकरियों की तलाशी लेने की जरूरत नहीं महसूस की इन टोकरियों को शहर के एकांत वाले इलाके में ले जाया गया. वहाँ से मजदूरों को वापस भेज दिया गया. शिवाजी और उनके बेटे टोकरियों से निकलकर आगरा से छह मील दूर एक गाँव में पहुंचे जहाँ उनके मुख्य न्यायाधीथ नीरजी रावजी उनका इंतजार कर रहे थे.
एसएम पगाड़ी अपनी किताब छत्रपति शिवाजी में लिखते हैं, यह मानकर नहीं चलना चाहिए कि शिवाजी टोकरी में बैठकर ही बाहर आए. वो इस तरह के व्यक्ति नहीं थे कि टोकरी में बैठकर पूरी तरह से असहाय बन जाएं. शिवाजी का नौ साल का बेटा संभाजी जरूर टोकरी के अंदर बैठा होगा लेकिन शिवाजी मजदूर के वेश में खुद टोकरी लेकर बाहर आए होंगे

इस बीच हीरोजी रातभर और अगले दिन दोपहर तक उस पलंग पर लेटे रहे. सैनिकों ने जब शिवाजी के कमरे में झाँककर देखा तो वो यह देखकर संतुष्ट हो गए कि शिवाजी के सोने के कड़े बिस्तर पर लेटे व्यक्ति के हाथ में दिखाई दे रहे हैं और जमीन पर बैठा एक व्यक्ति उनके पैरों की मालिश कर रहा है। करीब तीन बजे हीरोजी चुपके से एक नौकर के साथ घर के बाहर निकल गए। इस बीच हीरोजी रातभर और अगले दिन दोपहर तक उस पलंग पर लेटे रहे । इतने समय मे छत्रपति शिवाजी औरंगजेब की पकड़ से बहुत दूर चले गए.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *