अंग्रेजी शासन का भारतीय जनजीवन पर प्रभाव Effect of British Rule On Indian People

अंग्रेजी शासन का भारतीय जनजीवन पर प्रभाव
1 खाली स्थानों को भरिए-
1 किसी भी शासक के लिए भूराजस्व आमदनी का प्रमुख सो्रत था।
2 स्थाई बंदोबस्त कार्नवालिस ने लागू किया था।
3 रैयतवाड़ी व्यवस्था कार्नवालिस की राजस्व नीति थी।
4 अंग्रेजों ने पंजाब व मध्यप्रांत में महालवाड़ी भू.राजस्व व्यवस्था लागू की ।
5 छत्तीसगढ़ में गाँव की लगान वसूली हेतु गौंटिया पद सृजित ।

2 उचित संबंध जोड़िए
1 भारत का मैनचेस्टर – ढाका
2 वस्त्र उद्योग – सूरत
3 जहाज निर्माण – मछलीपट्टनम
4 फोर्ट विलियम कॉलेज – कलकत्ता



3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
1. 1793 में कार्नवालिस ने कौन-सी नई भूमि व्यवस्था लागू की ?

उत्तरः कार्नवलिस ने सन् 1793 में बंगाल प्रांत से राजस्व वसूलने के लिए नई भूमि व्यवस्था लागू की , जिसे स्थाई बन्दोबस्त के नाम से जाना जाता है । इस के तहत यह फैसला किया कि भू – राजस्व की वसूली जमींदारों के हाथ हो । कार्नवालिस ने 1789-90 में देय भू – राजस्व के आधार पर जमींदारों को अगले दस सालों के लिए जमीन का मालिक मान लिया । अब वे जमीन की खरीदी बिक्री और लगान नहीं पटाने पर किसानों को बेदखल भी कर सकते थे । इस कानून की सबसे बड़ी कमी यह थी कि इसमें लगान को कृषि के विकास और उत्पादन में वृद्धि या घटने को अनदेखा कर दिया गया था। इससे जमींदारों को तो फायदा हुआ पर सरकार और किसानों को इससे अधिक लाभ न हो सका ।

2. अंग्रेजी शासन के समय भारत में संचार एवं परिवहन के साधन में क्या-क्या परिर्वतन आए ?

उत्तरः अंग्रेजी शासन के समय भारत में संचार और परिवहन के क्षेत्र में कई नये अध्याय जुड़े । अंग्रेजों को भारत में अपने व्यापार के विस्तार व उसके कुशल संचालन के लिए विस्तृत परिवहन व्यवस्था की आवश्यकता थी इसलिए उन्होंने पूरे भारत में सड़क व रेल सेवाओं का विस्तार आरंभ किया । भारत में रेल सेवा की शुरुआत एक क्रांतिकारी परिवर्तन था । डलहौजी के प्रयासों से सन् 1853 में भारत में पहली रेलगाड़ी बम्बई से थाणे के बीच चली थी । भारत के प्रमुख महानगरों व व्यापारिक नगरों को बन्दरगाहों से जोड़ा गया । परिवहन और संचार के साधनों में हुए विकास के कारण लोग निकट आने लगे । सन् 1853 में भारत में टेलीग्राम सुविधा प्रारंभ हुई और डाक व्यवस्था में भी सुधार किया गया ।
3. अंग्रेजों की नई शिक्षा व्यवस्था का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा ?

उत्तरः भारतीय शासकों ने पाठशालाओं, मदरसों को सरकारी जमीन दान पर दी थी। अंग्रेजों ने यह जमीन उनसे छीन ली । उन्होंने नई शिक्षण सस्थाओं की स्थापना की । इन शिक्षण संस्थाओं में भारतीय भाषाओं के अलावा इतिहास, कानून, उर्दू, पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान का अध्ययन होता था। ब्रिटिश शासकों ने भारत में शिक्षा के विाकस के लिए 1833 के चार्टर एक्ट के आधार पर 1835 में मैकाले की शिक्षा नीति लागू की । इसमें मुख्य रूप से अंग्रेजी पढ़ाना और उनकी मानसिकता को शासन के पक्ष में करना था। राजा राममोहन राय जैसे समाज सुधारक नई शिक्ष के समर्थक थे। उनका मानना था कि नई शिक्ष के फलस्वरूप भारतीय ज्ञान-विज्ञान, स्वतंत्रता, जनतंत्र तथा राष्ट्रीय आंदोलनों को मदद मिलेगी। नई शिक्षा नीति का भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा । जो इस प्रकार हैं-
(1) शिक्षा के प्रति लोगों की जागरुकता बढ़ी ।
(2) भारतीय ज्ञान – विज्ञान के क्षेत्र में नये विचारों का जन्म हुआ
(3) लोग अंग्रेजी साहित्य व देश दुनिया की घटनाओं से परिचित होने लगे ।
(4) राष्ट्रीयता की भावना प्रबल हुई ।
(5) बेरोजगारी दूर होने लगी ।
(6) समाज में व्याप्त अंधविश्वास व रूढ़ियों के विरोध में कई सामाजिक आन्दोलन और सुधार कार्य हुए । स्त्री शिक्षा पर जोर दिया जाने लगा।
(7) स्वतंत्रता , समानता और लोकतांत्रिक विचारों का जन्म हुआ । छूआ-छूत भेदभाव पर नवीन विचारों का जन्म हुआ।
4. भारत के प्राचीन उद्योग-धंधे क्यों बंद हो गए ?

उत्तर: भारत के प्राचीन उद्योग – धंधों के बन्द होने के कारण निम्न हैं –
1. कच्चे माल की कमी – अंग्रेज व्यापारी अत्यधिक मात्रा में भारत से कच्चे माल खरीद कर इंग्लैण्ड ले जाते थे, अतः भारतीय उद्योगों के लिए कच्चे माल की समस्या उत्पन्न हो जाती थी।
2. पूँजी की कमी – भारतीय उद्योगपतियों के पास धन की कमी थी । अंग्रेज आर्थिक रूप से अधिक सक्षम थे ।
3. अंग्रेजों से प्रतिस्पर्धा – अंग्रेजों द्वारा तैयार माल सस्ते व आकर्षक होते थे , अत रू भारतीय उद्योगपति उनसे प्रतिस्पर्धा करने में विफल रहे ।
4. तकनीकी अभाव – इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप तकनीकी ज्ञान का भण्डार था । जबकि भारतीय उद्योग परम्परागत ढंग से उत्पादन करते थे , जिसमें लागत अधिक पड़ता था ।
5. उचित प्रबंधन – परिवहन की समुचित व्यवस्था न होना जैसी समस्या भी प्राचीन भारतीय उद्योगों की थी ।

5. भारतीय किसानों की दशा क्यों दयनीय हो गई?

उत्तर: भारतीय किसानों पर अंग्रेजों का राजस्व कर बहुत भारी और अनिवार्य था । अंग्रेजों के कर्मचारी किसाने से कर बड़ी ही निर्ममता से वसूलते थे। यहाँ तक की अकाल जैसी भीषण परिस्थिति में भी किसानों को कर चुकाना ही पड़ता था । कर चुकाने के लिए किसान साहूकारों और जमींदारों से ब्याज पर पैसा लेते थे । नियत तिथि तक कर्ज चुकता नहीं करने पर उनकी जमीन साहूकारों द्वारा हड़प ली जाती थी । परिणामस्वरूप भारतीय किसानों की आर्थिक दशा अति दयनीय हो गई । यह कहावत बन गई थी कि किसान कर में जन्म लेता और कर में ही मर जाता था।
6. भारतीय दस्तकारी एवं शिल्पकलाओं के नाम लिखिए ।

उत्तरः कपड़े बूनना , जूते बनाना , मिट्टी के बर्तन बनाना , लोहे से औजार बनाना , बाँस से विभिन्न वस्तुएँ बनाना , दोना ,पत्तल , मिट्टी , लोहे और लकड़ियों पर विभिन्न प्रकार आकृतिबनाना , भवन व मंदिरों में विभिन्न आकृति बनाना , आदि प्रमुख दस्तकारी व शिल्प कला है।
7. भारत में प्रकाशित होने वाले किन्हीं चार समाचार पत्रों के नाम लिखिए।
उत्तरः भारत में प्रकाशित होने वाले चार समाचार पत्रों के नाम- द हिन्दू , अमृत बाजार पत्रिका ,द इंडियन मिरर , केसरी ।

8. छत्तीसगढ़ से प्रकाशित होने वाले कोई चार समाचार पत्रों के नाम लिखिए ।
उत्तरः प्रजा हितैषी, छत्तीसगढ मित्र, छत्तीसगढ विकास, महाकोषल
9. ब्रिटिश भारत के दो प्रमुख बंदरगाहों के नाम लिखिए
उत्तरः मद्रास और कलकत्ता भारत के दो प्रमुख बंदगाह थे।
10. अंगेजों की स्थाई बंदोबस्त की नीति को समझाइए ।

उत्तरः अंग्रेज सरकार ने सन् 1789 में बंगाल प्रात से राजस्व वसूल करने के लिए जमींदारों के साथ समझौता किया जो स्थायी बंदोबस्त कहलाया । कार्नवालिस ने फैसला किया कि भू-राजस्व की वसूली जमीदारों के हाथ हो । जमींदार भू-राजस्व न दे सके तो उसकी जमींदारी जब्त करके उसी जगह नए जमींदार को बिठा दिया जाएगा। बार-बार भू-राजस्व निर्धारण से बचने के लिए कार्नवालिस ने 1789-90 में देय भू-राजस्व के आधार पर जमींदारों को दस साल के लिए जमीन का मालिक मान लिया । अब वे जमीन खरीदी बिक्री कर सकते थे एवं लगान न पटाने पर किसानों को जमीन से बेदखल भी कर सकते थे। कम्पनी शासन के लिए भू-राजस्व आमदनी का प्रमुख सो्रत थी इस व्यवस्था सेकंपनी को आर्थिक स्थयित्व प्राप्त हो गया । इस कानून की सबसे बड़ी कमजोरी यह थी कि लगान को कृषि के विकास और उत्पादन में वृद्धि बढ़ाने या घटाने से जोड़कर नहीं देखा गया । इस व्यवस्था में इसीलिए किसानों या सरकार को इससे अधिक फायदा नहीं हुआ ।




11. ब्रिटिश कालीन छत्तीसगढ़ में भू-राजस्व व्यवस्था को समझाइए ।

उत्तरः अँग्रेज अधिकारियों ने छत्तीसगढ़ की लगान (भू-राजस्व) व्यवस्था में अनेक परिवर्तन किए। उन्होंने छत्तीसगढ़ को अनेक तहसील में बाँट दिया और तहसीलदारों की नियुक्तियों की। प्रत्येक परगने में लगान वसूल करने के लिए अमीर और पण्ड्या, राजस्व अधिकारी की नियुक्ति की । अँग्रेज अधिकारियों ने मराठा प्रशासन के समय प्रचलित पटेल के पद को समाप्त कर दिया और उसके स्थान पर गौटिया का पद सृजन किया। उस समय गाँव के गौटिया वर्ष में तीन किश्तों में लगान वसूल किया करते थे। लगान का निर्धारण जमीन के क्षेत्र के आधार पर किया जाता था। गौटिया अपने गाँव से लगान वसूलकर सरकारी खजाने में जमा करते थे। अंग्रेजों द्वारा लागू की गई इन लगान व्यवस्थाओं से किसानों को कोई लाभ नहीं हुआ, क्योंकि अंग्रेजों द्वारा लागू प्रत्येक लगान की दर बहुत ऊँची तथा अनिवार्य थी, जिन्हें कृषि की आय से चुका पाना मुश्किल होता था। इसलिए किसानों को जमींदारों एवं साहूकारों से कर्ज भी लेना पड़ता था। नियत समय पर कर्ज न पटा सकने पर उनकी जमीन साहूकारों द्वारा हड़प ली जाती थी।
12. अंग्रेजों की नीति का भारतीय दस्तकारी एवं शिल्पकला पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तरः अंग्रेजों की कुटिल नीति के कारण भारतीय दस्तकारी व शिल्पकला पूरी तरह चौपट होने लगी । अंग्रेजों ने इंग्लैण्ड से आने वाली वस्तुओं को तटकर और चुंगीकर से पूर्णतः मुक्त कर दिया , जिसके फलस्वरूप वस्तुएँ बहुत सस्ती हो गईं । भारतीय दस्तकारों व शिल्पियों द्वारा बनाई गई वस्तुएँ महँगी होती थीं , क्योंकि वे वस्तुओं का निर्माण कम तादाद और हाथों से बनाते थे , अतः उसका लागत मूल्य बढ़ जाता था । इसके बावजूद उन्हें अपनी वस्तु सस्ती बेचने पड़ती थी । इस प्रकार अंग्रेजों के सामने प्रतिस्पर्धा में ज्यादा समय तक टिक न सके और अपना व्यवसाय धीरे – धीरे छोड़ने लगे । इसके कारण उनकी बस्तियाँ उजड़ने लगी । ढाका जिसे उस समय वस्त्र उद्योग का प्रमुख केन्द्र होने के कारण मैनचेस्टर कहा जाता था , नष्ट हो गया । मुर्शिदाबाद और सूरत के उद्योग भी बंद हो गए । कारीगर बेरोजगार हो गए । इस प्रकार कहा जा सकता है कि अंग्रेजों का स्वार्थी नीति ने भारतीय दस्तकारी व शिल्पकला की कमर तोड़ने में कोई कसर न छोड़ी ।
13. ब्रिटिश कंपनी की नीतियों का भारतीय वन क्षेत्रों पर क्या प्रभाव पड़ा ?

उत्तरः ब्रिटिश कम्पनी ने भारत में विद्यमान प्राकृतिक संसाधनों को अत्यधिक नुकसान पहुँचाया । वन क्षेत्रों में कई नई मिलों व कारखानों की स्थापना की गई । भारतीय वनों में उपलब्ध कीमती व महत्वपूर्ण लकड़ियों की अंधाधुंध कटाई हुई । उसे भारत से इंग्लैंण्ड भेजा जाने लगा । धीरे – धीरे वन क्षेत्र कम होने लगे ।अंग्रेजों ने भारतीय संसाधनों का निर्ममतापूर्वक दोहन किया । उनका उद्देश्य केवल अधिकाधिक लाभ कमाना था ।
14. ब्रिटिश शासन का भारतीय संचार एवं परिवहन व्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा ?

उत्तरः यह सत्य है कि अंग्रेजों ने अपने स्वार्थों की पूर्ति के में लिए संचार व परिवहन व्यवस्था का विस्तार किया लेकिन इससे भारत में नये अध्याय का प्रारंभ हुआ । सभी बड़े महानगरों व औद्योगिक नगरों को सड़क मार्ग और बन्दरगाहों से जोड़ा गया । भारत में रेल सेवा का शुभारम्भ भी किया गया । मुम्बई से थाणे के बीच पहली बार रेल चली । सन् 1853 में भारत में टेलीग्राम सुविधाओं का श्रीगणेश हुआ । डाक सेवा में भी कई महत्वपूर्ण बदलाव किया गया । समाचार पत्रों ने भी शासन की नीतियों को समझने व एकता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की ।
संचार व्यवस्था सुगम होने से भारत के दूर-दराज के लोग एक सूत्र में जुड़ गए।
15. समाचार पत्र जनता की अपेक्षाओं को शासन तक किस तरह पहुँचाते हैं ?

उत्तरः समाचार पत्रों ने जनता की अपेक्षाओं का शासन तक पहुँचाने का भरसक प्रत्यन्न किया । शासन की कुटिल नीतियों को लोगों तक पहुँचाने व जनमत तैयार करने में समाचार पत्रों की भूमिका महत्वपूर्ण थी । समाचार पत्रों को , लोकवाणी को मुखरित करने के कारण तात्कालिक वायसराय ने वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट पारित कर समाचार पत्रों को नियंत्रित कर दिया । उस समय देश में द हिन्दू , द इण्डियन मिरर , अमृत बाजार पत्रिका , केसरी , मराठा , स्वदेश मिलन , प्रभाकर आदि समाचार पत्र प्रकाशित हो रहे थे ।
16. संचार और परिवहन के साधनों का विकास होने से लोगों में राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ। इस बात के समर्थन में अपने तर्क दीजिए।
उत्तर – संचार एवं परिवहन से भारत में मौजूद दूर-दूराज के लोगों के बीच विचारों का खूब आदान प्रदान हुआ । वे देष में हो रही विभिन्न गतिविधयों से रूबरू हुए। वैचारिक आदान प्रदान होने से राष्ट्रीयता की भावना को बल मिला ।
17. राजा राममोहन राय जैसे समाज सुधारकों ने अंग्रेजी की नई शिक्षा-व्यवस्था का समर्थन क्यों किया ? इसके उत्तर में अपना तर्क दीजिए।

उत्तर: 19वीं सदी के भारत के एक प्रमुख समाज सुधारक राजा राम मोहन राय ने वास्तव में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों द्वारा शुरू की गई नई शिक्षा प्रणाली का समर्थन किया था। इस रुख के समर्थन में कई तर्क दिए जा सकते हैं

1. आधुनिकीकरण और पश्चिमीकरण
राजा राम मोहन राय सामाजिक सुधारों के प्रबल समर्थक थे और उनका मानना था कि पश्चिमी शिक्षा और संस्कृति के पहलुओं को अपनाने से भारतीय समाज को आधुनिक बनाने में मदद मिल सकती है। उन्होंने माना कि ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली विज्ञान, गणित और दर्शन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में ज्ञान प्रदान करती है, जिनकी पारंपरिक भारतीय शिक्षा में कमी थी।

2. तर्कसंगतता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण
राजा राम मोहन राय ने तर्कसंगतता और वैज्ञानिक सोच के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली को आलोचनात्मक सोच, वैज्ञानिक जांच और तार्किक तर्क को बढ़ावा देने के साधन के रूप में देखा, जो उनका मानना था कि सामाजिक प्रगति और विकास के लिए आवश्यक थे।

3. प्रबोधन विचारों का प्रसार
ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली स्वतंत्रता, समानता और मानवाधिकारों के प्रबोधन आदर्शों से प्रभावित थी। राजा राम मोहन राय इन विचारों से गहराई से प्रभावित थे और उन्हें अधिक न्यायपूर्ण और समतावादी समाज के अपने दृष्टिकोण के अनुकूल मानते थे। उनका मानना था कि ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली को अपनाकर भारतीय इन प्रगतिशील विचारों से परिचित हो सकते हैं।

4. सशक्तिकरण और सामाजिक गतिशीलता
राजा राम मोहन राय ने माना कि शिक्षा व्यक्तिगत सशक्तिकरण और सामाजिक गतिशीलता के लिए एक शक्तिशाली उपकरण है। ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली की वकालत करके, उन्होंने जनता को उनकी जाति, लिंग या सामाजिक पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना शैक्षिक अवसर प्रदान करने की मांग की। उनका मानना था कि शिक्षा गरीबी और भेदभाव के चक्र को तोड़ने में मदद कर सकती है।

5. ज्ञान अर्जन
राजा राम मोहन राय ने स्वीकार किया कि ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली पारंपरिक भारतीय शिक्षा की तुलना में व्यापक और अधिक व्यापक पाठ्यक्रम प्रदान करती है। इसने आधुनिक विज्ञान, अंग्रेजी भाषा कौशल और दुनिया के विभिन्न हिस्सों से नए विचारों तक पहुंच प्रदान की। उनका मानना था कि तेजी से बदलती दुनिया में भारत की प्रगति के लिए ऐसा ज्ञान आवश्यक है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जहां राजा राम मोहन रॉय ने ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली की शुरूआत का समर्थन किया, वहीं उन्होंने भारत के सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ के अनुरूप इसे अपनाने और स्वदेशीकरण की आवश्यकता पर भी जोर दिया। उन्होंने पश्चिमी और भारतीय ज्ञान प्रणालियों के मिश्रण की वकालत की, जिसका लक्ष्य दोनों के सर्वाेत्तम पहलुओं का संश्लेषण करना था।

18. ब्रिटिश युग में प्रेस के विकास समझाइए ।
भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान प्रेस के विकास को कई चरणों में विभाजित किया जा सकता है, जिनमें से प्रत्येक में महत्वपूर्ण मील के पत्थर और परिवर्तन शामिल हैं। यहां प्रमुख घटनाक्रमों का अवलोकन दिया गया हैरू

1. प्रारंभिक चरण (1770-1820)
– सबसे पहले समाचार पत्र ब्रिटिश व्यक्तियों द्वारा स्थापित किए गए थे, मुख्य रूप से औपनिवेशिक प्रशासन और भारत में ब्रिटिश समुदाय के हितों की सेवा के लिए। उदाहरणों में जेम्स ऑगस्टस हिक्की का बंगाल गजट (1780) शामिल है, जो भारत में पहला अंग्रेजी भाषा का समाचार पत्र था।
– ये शुरुआती समाचार पत्र मुख्य रूप से यूरोपीय समाचार, शिपिंग शेड्यूल और विज्ञापनों पर केंद्रित थे। भारतीय आबादी के बीच उनका प्रसार और पाठक संख्या सीमित थी।
2. वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट (1878)
– ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा पेश किए गए इस अधिनियम का उद्देश्य भारतीय भाषाई प्रेस को विनियमित करना था। इसमें भारतीय भाषाओं के समाचार पत्रों को प्रकाशन से पहले अपनी सामग्री को सरकारी अधिकारियों द्वारा जांच के लिए प्रस्तुत करना आवश्यक था।
– इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य भारतीय भाषा के समाचार पत्रों में व्यक्त राष्ट्रवादी और उपनिवेशवाद विरोधी भावनाओं को दबाना था, जो उभरने और लोकप्रियता हासिल करने लगी थीं।
– वर्नाक्यूलर प्रेस अधिनियम के कारण भारतीय भाषाई प्रेस की स्वतंत्रता और स्वतंत्रता में गिरावट आई। हालाँकि, इसने भारतीय पत्रकारों और राष्ट्रवादियों के विरोध और प्रतिरोध की लहर भी फैला दी।

3. राष्ट्रवादी प्रेस का उदय (19वीं सदी के अंत से 20वीं सदी के प्रारंभ तक)
– 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में एक जीवंत राष्ट्रवादी प्रेस का उदय हुआ, जिसने जनमत को आकार देने और भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्थन जुटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
– अमृता बाजार पत्रिका, केसरी और स्वदेशमित्रन जैसे समाचार पत्र दादाभाई नौरोजी, बाल गंगाधर तिलक और गोपाल कृष्ण गोखले जैसे राष्ट्रवादी नेताओं के लिए प्रभावशाली मंच बन गए।
– राष्ट्रवादी प्रेस ने औपनिवेशिक शासन के अन्यायों को उजागर करने, राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने और राजनीतिक सुधारों की वकालत करने के लिए संपादकीय, लेख, कार्टून और सार्वजनिक बहस जैसी विभिन्न रणनीति का इस्तेमाल किया।

4. प्रेस अधिनियम और सेंसरशिप
– ब्रिटिश सरकार ने राष्ट्रवादी प्रेस के बढ़ते प्रभाव को रोकने और असहमति को दबाने के लिए कई कानून बनाए। 1910 का भारतीय प्रेस अधिनियम और 1919 का रोलेट अधिनियम इसके उल्लेखनीय उदाहरण थे।
– इन अधिनियमों ने सरकार को समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार दिया, जिसमें प्री-सेंसरशिप, कुछ प्रकाशनों पर प्रतिबंध और राजद्रोह और सरकार विरोधी गतिविधियों के लिए कठोर दंड शामिल हैं।
– इन दमनकारी उपायों के बावजूद, राष्ट्रवादी प्रेस फलता-फूलता रहा और सूचना के प्रसार और औपनिवेशिक शासन के खिलाफ प्रतिरोध को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

5. क्षेत्रीय एवं भाषाई प्रेस का विकास
– ब्रिटिश शासन के दौरान अंग्रेजी भाषा और राष्ट्रवादी प्रेस के साथ-साथ क्षेत्रीय और भाषाई समाचार पत्र भी फले-फूले।
– बंगाली, हिंदी, तमिल और उर्दू जैसी विभिन्न भारतीय भाषाओं में प्रकाशनों ने लोकप्रियता हासिल की और क्षेत्रीय साहित्य, संस्कृति और सामाजिक सुधार आंदोलनों को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण मंच बन गए।
– क्षेत्रीय प्रेस ने सामाजिक मुद्दों के बारे में जागरूकता फैलाने, शैक्षिक सुधारों की वकालत करने और क्षेत्रीय पहचान को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कुल मिलाकर, भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान प्रेस का विकास एक जटिल और विकासशील प्रक्रिया थी। जबकि औपनिवेशिक सरकार ने अपने हितों की रक्षा के लिए प्रेस को नियंत्रित और विनियमित करने का प्रयास किया, भारतीय पत्रकारों और राष्ट्रवादी नेताओं ने स्वतंत्रता के लिए अपने संघर्ष में जनता को शिक्षित करने, संगठित करने और प्रेरित करने के लिए समाचार पत्रों को शक्तिशाली उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया।
4. टिप्पणी लिखिए
अ. रैयतवाडी व्यवस्थाः

इस व्यवस्था का मूल आधार लगान का किसान यानि रैयत के साथ सीधे करार करना था। यह तय किया गया कि कृषि उत्पादन में हुए खर्च को निकालकर जो बचेगा उसका पचास प्रतिषत भू-राजस्व होगा ।
शुरू के दिनों में में फसल और उसके मूल्य के घटने-बढ़ने से राजस्व का कोई तालमेल नहीं था। बम्बई और मद्रास प्रेसीडेंसी प्रांत में 30 वर्षों के लिए यह बंदोबस्त लागू किया गया । किसानों सा थ सीधे करार के बावजूद इस व्यवस्था से किसानों का शोषण होता रहा ।
ब . छत्तीसगढ़ में भू-राजस्व व्यवस्था

अंग्रेज अधिकारियों ने छत्तीसगढ़ की लगान (भू-राजस्व) व्यवस्था में अनेक परिवर्तन किए। उन्होंने छत्तीसगढ़ को अनेक तहसील में बाँट दिया और तहसीलदारों की नियुक्तियों की प्रत्येक परगने में लगान वसूल करने के लिए अमीर और पण्ड्या, राजस्व अधिकारी की नियुक्ति की । अंग्रेज अधिकारियों ने मराठा प्रशासन के समय प्रचलित पटेल के पद को समाप्त कर दिया और उसके स्थान पर गाँटिया का पद सृजन किया। उस समय गाँव के गौटिया वर्ष में तीन किश्तों में लगान वसूल किया करते थे। लगान का निर्धारण जमीन के क्षेत्र के आधार पर किया जाता था। गौटिया अपने गाँव से लगान वसूलकर सरकारी खजाने में जमा करते थे।
अंग्रेजों द्वारा लागू की गई इन लगान व्यवस्थाओं से किसानों को कोई लाभ नहीं हुआ, क्योंकि अँग्रेजों द्वारा लागू प्रत्येक लगान की दर बहुत ऊँची तथा अनिवार्य थी, जिन्हें कृषि की आय से चुका पाना मुश्किल होता था इसलिए किसानों को जमींदारों एवं साहूकारों से कर्ज भी लेना पड़ता था। नियत समय पर कर्ज न पटा सकने पर उनकी जमीन साहूकारों द्वारा हड़प ली जाती थी। परिणाम स्वरूप किसानों की हालत बहुत खराब हो गई एवं शासन के प्रति असंतोष की भावना पनपने लगी। इस प्रकार कुछ स्थानों पर किसानों ने कंपनी शासन के विरूद्ध विद्रोह भी किया ।
स. महलवाड़ी व्यवस्था महलवाड़ी व्यवस्था –

सन् 1833-43 ई., बीच अँग्रेज शासकों ने पश्चिमी उत्तरप्रदेश में एक नई लगान व्यवस्था लागू की जिसमें पूरे गाँव (जिसे महल कहते थे) से लगान का बंदोबस्त किया जाता था, अर्थात् गाँव के सभी कृषक परिवारों पर लगान जमा करने की संयुक्त जिम्मेदारी थी। इसमें रैयत बंदोबस्त की तरह कृषि खर्च और किसानों के भरण-पोषण का खर्च निकालकर जो बचता था उसका लगभग आधा हिस्सा लगान के रूप में वसूल किया जाता था। इस व्यवस्था को पंजाब, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में भी लागू किया गया था।

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