अभ्यास प्रश्न
1. खाली स्थानों को भरिए
1. शारदा एक्ट 1929 द्वारा बाल विवाह पर रोक लगाई गई ।
2. सती प्रथा को बंद करवाने वाले समाज सुधारक राजा राम मोहन राय थे
3. आंध्रप्रदेश के एक प्रसिद्ध समाज सुधारक वीरेशलिंगम थे।
4. महात्मा गांधी ने अखिल भारतीय हरिजन सेवक संघ की स्थापना की।
5. छत्तीसगढ़ में निम्न वर्ग की स्थिति सुधारने का कार्य पंडित सुंदर लाल शर्मा ने किया।
6. गुरुघासीदास का जन्म बलौदाबाजार जिले के गिरौदपुरी में हुआ था।
2 उचित संबंध जोड़िए
1. राजा राममोहन राय – ब्रहम समाज
2. दयानंद सरस्वती – आर्य समाज
3. सर सैयद अहमद खाँ – अलीगढ़ आंदोलन
4. महादेव गोविंद रानाडे – प्रार्थना समाज
5.ज्योतिबा फुले – सत्यशोधक समाज
3. प्रश्नों के उत्तर लिखिए
1. गुरु घासीदास जयंती कब मनाई जाती है?
उत्तरः गुरु घासीदास की जयंती 18 दिसम्बर को मनाई जाती है ।
2. सती-प्रथा निषेध कानून कब और किस गर्वनर जनरल ने लागू किया था?
उत्तरः लार्ड विलियम बैंटिक ने 1829 को सती प्रथा निषेध कानून लागू किया था
3. विधवा-पुनर्विवाह कानून कब और किसके नेतृत्व में लागू हुआ था?
उत्तरः विधवा पुनर्विवाह कानून सन् 1856 में ईश्वर चंद विद्या सागर के नेतृत्व में लागू किया गया था ।
4. बाल विवाह प्रथा कब और किस एक्ट के द्वारा समाप्त हुई थी ?
उत्तरः बाल विवाह सन् 1929 में शारदा एक्ट द्वारा समाप्त भी हुई थी ।
5. प्रथम बालिका स्कूल कब और कहाँ खुला था?
उत्तरः प्रथम बालिका स्कूल सन् 1849 में कलकत्ता का बेथन स्कूल खुला था ।
6. अंग्रेजी शिक्षा से भारतीयों को किन-किन बातों की जानकारी मिली।
उत्तरः ( 1 ) अंग्रेजी भाषा के अध्ययन से पाश्चात्य साहित्य व संस्कृति को जानने का अवसर मिला ।
( 2 ) स्वतंत्रता , समानता , भाईचारा , लोकतंत्र , तार्किकता तथा वैज्ञानिकता जैसे आधुनिक
विचारों का परिचय मिला ।
( 3 ) आडम्बर , अंधविश्वास , रूढ़िवादिता , जाति – प्रथा जैसे दोषों में सुधार की आवश्यकता
महसूस की गई ।
( 4 ) प्राचीन धर्म – ग्रंथों और दर्शनशास्त्रों के अध्ययन शुरू हुए।
( 5 ) आधुनिक भारत के निर्माण की आधारशिला रखने में सहायता मिली ।
7. सतनाम पंथ के दो प्रमुख सिद्धांत बताइए?
उत्तरः सतनाम पंथ के जनक गुरु घासीदास थे । उन्होंने समाज सुधार के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया था । उन्होंने मानव जीवन को सार्थक बनाने के लिए अनेक उपाय बताये , जिनमें प्रमुख दो बातें ( सिद्धांत ) निम्नलिखित हैं। :-
1. सत्य ही ईश्वर –
गुरु घासीदास ने सत्य को ही ईश्वर कहा है । सच्चे मन से सत्य का आचरण करने से ही ईश्वर की प्राप्ति होती है । शेष बाह्य आडम्बर हैं , जिससे मन भटकता है । सतपंथ में सत्यनाम का प्रतीक श् श्वेत ध्वज श् यह संदेश देता है कि मनुष्य को सत्य मार्ग से कभी विचलित नहीं होना चाहिए । सत्य ही ईश्वर है , सत्य का पालन ईश्वर की उपासना है ।
2. सामाजिक व धार्मिक समानता –
गुरुघासी दास समाज में व्याप्त जातिवाद , छुआ – छूत और धार्मिक संकीर्णता का विरोध करते हैं । उन्होंने लोगों को यह संदेश दिया कि मानव मात्र ईश्वर के संतान हैं , अत रू उनमें भेद करना पाप है । मनुष्य का धर्म केवल मानव धर्म है । हमें सभी धर्मों का सम्मान व आदर करना चाहिए ।
8. विधवा-पुनर्विवाह कैसे संभव हुआ था ?
उत्तरः 19 वीं शताब्दी में भारतीय समाज में बाल विवाह प्रचलित था । इसी समय बंगाल में ईश्वरचंद विद्यासागर नामक सुधारक हुए । उन्होंने विधवा पुनर्विवाह को वैध बनाने के लिए अपना सारा जीवन लगा दिया । उसने बंगाल में इसके लिए जोरदार आन्दोलन चलाया । इस आन्दोलन का व्यापक जनसमर्थन भी मिला । महाराष्ट्र में भी पं . विष्णुशास्त्री स्वयं एक विधवा से विवाह कर समाज में उदाहरण प्रस्तुत किया । रामकृष्ण गोपाल भंडारकर ने रूढ़िवादियों के विरोध के बावजूद अपनी विधवा बेटी का पुनर्विवाह कराया । महादेव गोविन्द रानाडे ने इस आन्दोलन का समर्थन किया । आंध्रप्रदेश में भी वीरेशलिंगम द्वारा विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया गया । परिणामस्वरूप सन् 1856 में विधवा – पुनर्विवाह को कानूनी मान्यता मिल गई ।
9. जाति प्रथा के विरोध में ज्योतिबा फुले के योगदान को बताइए।
उत्तरः महाराष्ट्र में नारी शिक्षा के लिए अनेक प्रयास हुए । ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्री बाई द्वारा पूना में बालिका स्कूल खोला गया । इसमें निम्न जाति के बालिकाओं को विशेष रूप से प्रवेश दिया गया । अब बालिकाओं के लिए न केवल प्राथमिक बल्कि उच्च शिक्षा का भी समर्थन होने लगा।उन्होंने विभिन्न नाटकों एवं लेखों द्वारा भी जाति प्रथा के विरुद्ध जन – जागरण लाने का निरन्तर प्रयास किया । ज्योतिबा फुले के द्वारा किया गया जातिवाद के खिलाफ इस संघर्ष ने ही समाज में निम्न जाति को सामाजिक समानता का अधिकार दिलाने में मील का पत्थर साबित हुआ ।
10. नारी शिक्षा हेतु विभिन्न प्रयासों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः ( i ) नारी शिक्षा की दिशा में सबसे पहला प्रयास ईश्वर चन्द विद्यासागर ने किया । उनके द्वारा सन् 1849 में कलकत्ता का बेसन स्कूल खोला । यह बालिकाओं का पहला स्कूल था ।इसके बाद उन्होंने कई अन्य विद्यालयों का भी संचालन किया ।
( ii ) उत्तर भारत में स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज के माध्यम से बालक – बालिकाओं को शिक्षित करने के लिए कई चल स्कूलों व कालेजों की स्थापना की ।
( iii ) सर सैय्यद अहमद खाँ ने भी मुस्लिम समाज के विकास के लिए अलीगढ़ आन्दोलन चलाया तथा स्कूलों व कालेजों में आधुनिक शिक्षा की व्यवस्था की
( iv ) महाराष्ट्र में ज्योतिबा फुले व उनकी पत्नी सावित्री बाई ने पूना में बालिका स्कूल खोला । इसमें निम्न जाति की बालिकाओं को विशेष रूप से प्रवेश दिया जाता था ।
( v) रमाबाई ने विधवा महिलाओं को शिक्षित करने के लिए शारदा सदन नामक आश्रम व स्कूल खोला । वे स्वयं संस्कृत की विदुषी थी ।
11. जातिप्रथा को पूरी तरह समाप्त करने के लिये आज भी समाज में किसकी आवश्यकता है ?
उत्तरः जातिप्रथा को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए आज समाज में पर्याप्त जन – जागरण की आवश्यकता है जिसके लिए निरंतर प्रयास किए जा रहें है।
12. आपको लगता है कि बाल विवाह गलत और विधवा पुर्नविवाह सही है कैसे ? इस पर अपने विचार लिखिए।
उत्तरः बाल विवाह पूर्णतः गलत है क्योंकि इसमें लड़के एवं लड़कियाँ शारीरिक एवं मानसिक रूप से कमजोर तथा पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन करने में सक्षम नहीं होते । लड़कियों में कम उम्र में माँ बनने का बोझ आ जाता है । जिससे उनकी अनेक प्रकार की शारीरिक क्षति होती है । विधवा पुनर्विवाह इसलिए आवश्यक है क्योंकि अकेले ही पारिवारिक दायित्वों को निभाना बहुत ही कठिन होता है । समाज में अकेले रहना अत्यंत दुश्कर है अत रू विधवा पुनर्विवाह आवश्यक है ।
टिप्पणी लिखिए –
अ. रमाबाई
रमाबाई का जन्म सन् 1856 में हुआ था । उनके पिता अनंतशास्त्री वेदपाठी ब्राह्मण थे । उन्होंने सामाजिक विरोध के बावजूद अपनी पत्नी को संस्कृत पढ़ाना प्रारंभ कर दिया , जिसके कारण उन्हें गाँव से निकाल दिया गया । मात्र 14 वर्ष की आयु में रमाबाई के माता – पिता रमाबाई व उनके भाई को छोड़ स्वर्ग सिधार गए । रमाबाई की शिक्षा उसके लिए अभिशाप बन गई , उन्हें किसी ने सहारा नहीं दिया । रमाबाई जब कलकत्ता पहुँची तो उनका सम्पर्क राजा राम मोहन राय , ईश्वरचन्द विद्यासागर जैसे प्रसिद्ध समाज सुधारकों से हुआ । कलकत्ता के लोगों ने उन्हें पंडिता व “ सरस्वती की उपाधि देकर सम्मानित किया । उन्होंने विधवा स्त्रियों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया और इसके लिए उन्होंने शारदा सदन की स्थापना की , जिसमें महिलाओं को सिलाई , कढ़ाई व अन्य प्रशिक्षणों के साथ नि रू शुल्क शिक्षा की भी व्यवस्था की । वे चाहती थी कि महिलाएँ भी पुरुषों के समान सामाजिक व राजनीतिक क्षेत्र में खुलकर सामने आएँ और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने जीवन भर संघर्ष किया ।
ब. डॉ. भीमराव अम्बेडकर
डॉ . भीमराव अम्बेडकर का जन्म महाराष्ट्र के एक दलित परिवार में हुआ था । बचपन में ही इन्हें माता – पिता का वियोग झेलना पड़ा । अछूत जाति के होने के कारण विद्यालय में इन्हें अलग कोने में बिठा दिया जाता था । दृढ़ संकल्पी और कठोर परिश्रमी भीमा ने धैर्यपूर्वक विपरीत परिस्थितियों का सामना किया और श्रेष्ठतम परिणामों के कारण उन्हें सरकारी खर्च पर उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड जाने का अवसर मिला । कानून विद् बनकर लौटे अम्बेडकर ने अपना सारा जीवन दलितों के उद्धार में समर्पित कर दिया । उनकी असाधारण प्रतिभा के कारण ही उन्हें भारतीय संविधान निर्मात्री सभा के प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया । उन्हीं के प्रयासों से भारतीय संविधान में छुआ – छूत का अंत ( अनुच्छेद -17 ) करने को बाल मान्यता दी गई । वर्तमान में सभी लोगों को बिना किसी भेदना के सार्वजनिक स्थलों व सेवाओं के उपयोग का अधिकार है । यह बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर के प्रयासों काही मुला है ।
2. अपने शिक्षक के साथ चर्चा कीजिए –
अ. दहेज प्रथा -एक सामाजिक अभिशाप है।
उत्तरः दहेज प्रथा एक गहरा सामाजिक अभिशाप है जो दुनिया भर के कई समाजों को पीड़ित करता है। यह एक ऐसी प्रथा है जिसमें दुल्हन के परिवार को शादी के दौरान दूल्हे के परिवार को महत्वपूर्ण वित्तीय या अन्य उपहार प्रदान करना होता है। यह प्रणाली लैंगिक असमानता को कायम रखती है, और उनके परिवारों पर भारी बोझ डालती है। यह शोषण, घरेलू हिंसा और यहां तक कि दहेज से संबंधित मौतों की ओर ले जाता है। दहेज प्रथा समाज की प्रगति में बाधक है क्योंकि इससे लैंगिक असमानता पैदा होती है । यह हानिकारक रूढ़ियोंवादी विचारधार को बढ़ाती है। हमारे समाज से इस अन्यायपूर्ण और हानिकारक प्रथा को मिटाने के लिए जागरूकता बढ़ाना, सांस्कृतिक मानदंडों को चुनौती देना और कानून में सुधार की आवश्यकता है।
ब. जाति प्रथा -मानवता के मार्ग में बाधक तत्व है।
उत्तरः जाति व्यवस्था एक पुरातन सामाजिक संरचना है जो मानव और मानव समाज के लिए घातक है । इस कुप्रथा का दंश भारत सदियों से झेल रहा है। प्राचीन परंपराओं और मान्यताओं में निहित, जाति व्यवस्था व्यक्तियों को कठोर सामाजिक पदानुक्रमों में वर्गीकृत करती है, उनकी सामाजिक स्थिति, व्यवसाय और यहां तक कि व्यक्तिगत बातचीत का निर्धारण करती है। यह प्रणाली भेदभाव, असमानता और सामाजिक अन्याय को बढ़ावा देती है। यह व्यक्तियों को समान अवसरों से वंचित करता है, सामाजिक गतिशीलता को रोकता है, और सामूहिक वृद्धि और विकास की क्षमता को प्रतिबंधित करता है। जाति व्यवस्था विभाजन तथा पूर्वाग्रहों को बढ़ावा देती है और समानता और मानवाधिकारों के सिद्धांतों को कमजोर करती है। सही मायने में एक न्यायपूर्ण और समावेशी समाज को बढ़ावा देने के लिए, इस गहरी पैठ वाली व्यवस्था को चुनौती देना और नष्ट करना अनिवार्य है।