दूसरा एंग्लो-मराठा युद्ध (1803-1805)

दूसरा एंग्लो-मराठा युद्ध (1803-1805) ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठा संघ के बीच एक महत्वपूर्ण संघर्ष था। इसके परिणामस्वरूप अंग्रेजों को प्रमुख क्षेत्रीय लाभ प्राप्त हुए और मराठा साम्राज्य और भी कमजोर हो गया। आंग्ल मराठों की बीच लड़ाई के क्या कारण थे?
युद्ध के कारण
मराठों के आंतरिक संघर्ष:
मराठों के संघ थे जिनमें पेशवा (प्रधानमंत्री), सिंधिया, होलकर और भोंसले आते थे। इनके बीचे आपस में प्रतिद्वंद्विता थी और वे सत्ता के लिए लड़ते रहते थे।
बेसिन की संधि जब 1802 में, पेशवा, बाजी राव द्वितीय होलकर से पराजित हुए तो उन्होंने ब्रिटिश से सुरक्षा की मांग की । इसके लिए होल्करों ने एक समझौता किय जिसे बेसिन की संधि कहते हैं। संधि के बाद होल्कर अंग्रेजों के आश्रित बन गए। यह संधि अन्य मराठा प्रमुखों के बीच अत्यधिक अलोकप्रिय थी।

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ब्रिटिश विस्तारवाद:
अंग्रेज भारत में अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिए दृढ़ थे और मराठा संघ के भीतर होने वाले अंतरिक कलह का वे हर तरह से फायदा उठाना चाहते थे। यह कलह ब्रिटिश के लिए एक अवसर था जिससे वे अपने साम्राज्य का विस्तार कर सके।
युद्ध का क्रम
ब्रिटिश आक्रमण अंग्रेजों ने दोतरफा आक्रमण किया, जिसमें जनरल वेलेस्ली (बाद में ड्यूक ऑफ वेलिंगटन) ने डेक्कन में अभियान का नेतृत्व किया और
जनरल लेक ने उत्तरी भारत में सेना की कमान संभाली।मुख्य युद्ध अंग्रेजों ने असाय, दिल्ली और लासवारी में निर्णायक जीत हासिल की, जिसमें उन्होंने सिंधिया और भोंसले की सेनाओं को हराया।
देवगांव और सुरजी-अंजनगांव की संधि ये संधियाँ क्रमशः भोंसले और सिंधिया के साथ हस्ताक्षरित की गईं, जिससे अंग्रेजों को महत्वपूर्ण क्षेत्र मिल गए। होल्कर का प्रतिरोध यशवंतराव होल्कर ने शुरू में अंग्रेजों का विरोध किया, लेकिन अंततः पराजित हुए और 1805 में राजघाट की संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर हो गए।
युद्ध के परिणाम
अंग्रेजों को मिला लाभ:
अंग्रेजों का मध्य भारत में विशाल क्षेत्रों पर कब्जा हो गया । जिसमें वर्तमान गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से शामिल थे। मराठा संघ कमजोर हो गया । युद्ध ने मराठा संघ के भीतर गहरे विभाजन को उजागर किया और ब्रिटिश विस्तारवादी निति का विरोध कमजोर पड़ गया ।
ब्रिटिश आधिपत्य का उदय:
द्वितीय एंग्लो-मराठा युद्ध ने भारत में प्रमुख शक्ति के रूप में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थिति को मजबूत किया। युद्ध का महत्व द्वितीय एंग्लो-मराठा युद्ध भारत में
ब्रिटिश शासन की स्थापना में एक महत्वपूर्ण कदम था। इसने अंग्रेजों की सैन्य श्रेष्ठता और भारतीय शासकों के बीच आंतरिक विभाजन का फायदा उठाने की उनकी क्षमता को प्रदर्शित किया। इस युद्ध ने मराठा संघ के पतन को भी उजागर किया जिसे अंततः तीसरे एंग्लो-मराठा युद्ध (1817-1818) में अंग्रेजों ने अपने अधीन कर लिया।
द्वितीय एंग्लो-मराठा युद्ध के दौरान मराठा शासक कौन था? :
द्वितीय एंग्लो-मराठा युद्ध के दौरान मराठा शासक बाजी राव द्वितीय थे।वे मराठा संघ के पेशवा (प्रधानमंत्री) थे, लेकिन उनका नेतृत्व कमजोर औरअप्रभावी था। वे अंग्रेजों के बढ़ते खतरे का सामना करने की तुलना मेंआंतरिक राजनीति और प्रतिद्वंद्विता से अधिक चिंतित थे। इसने अंततः युद्ध में मराठा हार में योगदान दिया।

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