श्रीरंगपट्टनम की लड़ाई 1799

मैसूर साम्राज्य और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी तथा उनके सहयोगियों के बीच हुए श्रृखलाबद्ध लड़ाई हुई थी जिसे एंग्लो-मैसूर लड़ाई के नाम से जाना जाता है। ये संघर्ष 18वीं शताब्दी के दौरान दक्षिण भारत में प्रभुत्व लड़ी गई थी। 1799 में श्रीरंगपट्टनम की लड़ाई चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध की अंतिम और निर्णायक लड़ाई थी, जिसने टीपू सुल्तान के शासनकाल और मैसूर साम्राज्य की स्वतंत्रता का अंत कर दिया।
श्रीरंगपट्टनम की लड़ाई (जिसे सेरिंगपटम भी कहते हैं), 4 मई 1799 को लड़ी गई, चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध के अंत को दर्षाने वाला एक निर्णायक संघर्ष था। यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेनाओं के बीच, हैदराबाद के निज़ाम और मराठों की सहयोगी सेनाओं द्वारा समर्थित, मैसूर साम्राज्य के शासक टीपू सुल्तान की सेना के विरुद्ध लड़ा गया था। इस युद्ध के परिणामस्वरूप टीपू सुल्तान की मृत्यु हो गई और उनकी राजधानी श्रीरंगपट्टनम का पतन हो गया, जिससे मैसूर साम्राज्य प्रभावी रूप से ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया।
पृष्ठभूमि
टीपू सुल्तान, जिन्हें मैसूर का बाघ कहा जाता है, भारत में ब्रिटिश विस्तार के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने ब्रिटिश प्रभुत्व का विरोध करने के लिए फ्रांसीसी और अन्य शक्तियों के साथ गठबंधन किया था। इसी वजह से 18वीं शताब्दी के अंत तक, दोनों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया था, जिसके कारण चौथा एंग्लो-मैसूर युद्ध हुआ। गवर्नर-जनरल लॉर्ड वेलेस्ली (बाद में ड्यूक ऑफ वेलिंगटन) के नेतृत्व में अंग्रेजों ने मैसूर को दक्षिण भारत में एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में खत्म करने का लक्ष्य रखा।
युद्ध की प्रस्तावना
अंतिम हमले से पहले, जनरल जॉर्ज हैरिस की कमान में ब्रिटिश सेनाएं 1799 की शुरुआत में श्रीरंगपट्टनम की ओर बढ़ीं। टीपू सुल्तान की सेना ने प्रतिरोध करने का प्रयास किया, लेकिन प्रारंभिक मुठभेड़ों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। अंग्रेजों ने अप्रैल 1799 में श्रीरंगपट्टनम के किले की घेराबंदी की, किलों की दी जाने वाली रसद और अन्य आपूर्ति बंद कर दी और शहर को अलग-थलग कर दिया।युद्ध के कारण
युद्ध के कारणों को विस्तार से समझना जरूरी है ।
1. अंग्रेजों की विस्तारवादी नीतियाँ
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का लक्ष्य दक्षिण भारत पर प्रभुत्व स्थापित करना था। टीपू सुल्तान के अधीन मैसूर एक शक्तिशाली राज्य था और उनके विस्तार में बाधा था। अंग्रेज टीपू सुल्तान को खत्म करना चाहते थे, जिन्होंने लगातार उनके अधिकार का विरोध किया था।
2. फ्रांसीसियों के साथ टीपू सुल्तान का गठबंधन
टीपू सुल्तान ने फ्रांस के साथ मजबूत संबंध बनाए रखे, यही गठबंधन अंग्रेजों की आंख में खटकता था । वे इस गठबंधन को अपने लिये खतरा मानते थे। क्योंकि फांस उस वक्त ब्रटेन का प्रतिद्वंद्वी था। टीपू सुल्तान ने अपनी सेना को आधुनिक बनाने और ब्रिटिश अग्रिमों का मुकाबला करने के लिए फ्रांसीसी सैन्य सहायता मांगी।

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– टीपू ने नेपोलियन बोनापार्ट के साथ दूतों का आदान-प्रदान भी किया, जो उस समय मिस्र में अभियान चला रहे थे। इससे अंग्रेज चिंतित हो गए, क्योंकि उन्हें डर था कि फ्रांस समर्थित मैसूर भारत में उनकी स्थिति को खतरे में डाल सकता है।
3. पिछले एंग्लो-मैसूर युद्ध
तीसरे एंग्लो-मैसूर युद्ध (1790-1792) ने मैसूर को पहले ही काफी कमज़ोर कर दिया था। श्रीरंगपट्टनम की संधि के तहत, टीपू सुल्तान को अपना आधा क्षेत्र छोड़ना पड़ा और एक बड़ी क्षतिपूर्ति का भुगतान करना पड़ा। हालाँकि, उन्होंने ब्रिटिश प्रभुत्व को स्वीकार नहीं किया और अपनी ताकत वापस पाने के लिए काम किया, जिससे नए सिरे से तनाव पैदा हुआ।
4. मैसूर का रणनीतिक स्थान
मैसूर की भौगोलिक स्थिति, दक्षिण भारत में प्रमुख व्यापार मार्गों और क्षेत्रों को नियंत्रित करती है, जिसने इसे मैसूर और अंग्रेजों दोनों के लिए अत्यधिक रणनीतिक बना दिया। अंग्रेजों ने मैसूर पर कब्ज़ा करना दक्षिण भारत को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक समझा।
5. ब्रिटिश गवर्नर-जनरल, लॉर्ड वेलेस्ली की भूमिका
भारत में ब्रिटिश गवर्नर-जनरल लॉर्ड वेलेस्ली ने सहायक गठबंधन प्रणाली का अनुसरण किया, जिससे भारतीय शासकों को ब्रिटिश वर्चस्व स्वीकार करने और अपने क्षेत्रों में ब्रिटिश सैनिकों को तैनात करने के लिए मजबूर होना पड़ा। टीपू सुल्तान ने इस नीति का कड़ा विरोध किया और ब्रिटिश आधिपत्य के आगे झुकने से इनकार कर दिया।
6. मित्र देशों का दबाव
अंग्रेजों ने हैदराबाद के निज़ाम और मराठों के साथ गठबंधन किया, जो मैसूर के पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी थे। इन गठबंधनों ने ब्रिटिश सेना को मजबूत किया और टीपू सुल्तान पर दबाव बढ़ा दिया।
7. विश्वासघात और आंतरिक असंतोष
माना जाता है कि टीपू सुल्तान के कुछ कमांडरों और स्थानीय सरदारों ने उसके साथ विश्वासघात किया, जिससे अंग्रेजों को खुफिया जानकारी और सहायता मिली। मैसूर के भीतर आंतरिक असंतोष ने भी टीपू की स्थिति को कमजोर कर दिया।
8. आर्थिक कारक
अंग्रेजों ने मैसूर के समृद्ध संसाधनों, जैसे मसाले, चंदन और रेशम पर नियंत्रण करना चाहा, जो व्यापार और राजस्व के लिए महत्वपूर्ण थे। मैसूर की आर्थिक स्वतंत्रता और धन ब्रिटिश वाणिज्यिक हितों के लिए खतरा थे।
युद्ध
4 मई, 1799 को अंग्रेजों ने किले पर एक बड़ा हमला किया। हमले की योजना सावधानीपूर्वक बनाई गई थी, जिसमें सेना ने दीवारों को तोड़ दिया और शहर पर धावा बोल दिया। संख्या में कम और घिरे होने के बावजूद, टीपू सुल्तान और उनके सैनिकों ने बहादुरी से लड़ाई लड़ी।
जब ब्रिटिश सैनिकों ने आंतरिक सुरक्षा में सेंध लगाई, तो युद्ध अपने चरम पर पहुंच गया। टीपू सुल्तान ने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया और अपनी स्थिति की रक्षा करते हुए किले के वाटर गेट के पास मारा गया। उनकी मृत्यु ने मैसूर के प्रतिरोध का अंत कर दिया।
परिणाम
– राजनीतिक प्रभाव श्रीरंगपट्टनम के पतन ने टीपू सुल्तान के शासन को समाप्त कर दिया और मैसूर साम्राज्य को ब्रिटिश प्रभाव में ला दिया। अंग्रेजों ने मैसूर के प्रशासन पर नियंत्रण सुनिश्चित करते हुए वोडेयार राजवंश से एक कठपुतली शासक को स्थापित किया।
– ब्रिटिश विस्तार इस जीत ने दक्षिण भारत में ब्रिटिश प्रभुत्व को मजबूत किया और उनके सबसे दुर्जेय विरोधियों में से एक को खत्म कर दिया।
– सांस्कृतिक प्रभाव टीपू सुल्तान की बहादुरी और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ प्रतिरोध ने उन्हें भारतीय इतिहास में एक महान व्यक्ति बना दिया। उनकी मृत्यु ने दक्षिण भारत में ब्रिटिश शासन के कड़े विरोध के एक युग का अंत कर दिया।
विरासत
श्रीरंगपट्टनम की लड़ाई भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में महत्वपूर्ण है। टीपू सुल्तान को उनकी सैन्य कुशलता, प्रगतिशील सुधारों और यूरोपीय सहायता से अपनी सेना को आधुनिक बनाने के प्रयासों के लिए याद किया जाता है। श्रीरंगपट्टनम का पतन भारत में ब्रिटिश सत्ता के बढ़ते एकीकरण का प्रतीक था, जो अंततः ब्रिटिश शासन की पूर्ण स्थापना में परिणत हुआ।
श्रीरंगपट्टनम की लड़ाई, 1799 लड़ाई किसने जीती?
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने सहयोगियों – हैदराबाद के निज़ाम और मराठों के समर्थन से लड़ाई जीत ली। श्रीरंगपट्टनम के किले पर उनकी सावधानीपूर्वक योजनाबद्ध घेराबंदी और हमले ने मैसूर के शासक टीपू सुल्तान पर उनकी निर्णायक जीत का मार्ग प्रशस्त किया।

लड़ाई के बाद क्या हुआ?

1. टीपू सुल्तान की मृत्यु
टीपू सुल्तान अपनी स्थिति का बचाव करते हुए किले के वाटर गेट के पास अंतिम हमले के दौरान मारे गए। उनकी मृत्यु ने चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध के अंत को चिह्नित किया।
2. ब्रिटिश नियंत्रण में मैसूर
लड़ाई के बाद, मैसूर साम्राज्य ब्रिटिश प्रभाव में आ गया। अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान के प्रशासन को खत्म कर दिया और मैसूर के शासन का पुनर्गठन किया।
3. मैसूर का विभाजन
मैसूर का क्षेत्र अंग्रेजों, हैदराबाद के निज़ाम और मराठों के बीच विभाजित किया गया था, जिन्होंने अंग्रेजों के साथ गठबंधन किया था।
युद्ध के बाद श्रीरंगपट्टनम का राजा कौन बना?
टीपू सुल्तान की मृत्यु के बाद, अंग्रेजों ने वोडेयार राजवंश के एक युवा राजकुमार कृष्णराज वोडेयार तृतीय को मैसूर का राजा बनाया। हैदर अली (टीपू सुल्तान के पिता) द्वारा सत्ता हथियाने से पहले वोडेयार मैसूर के पारंपरिक शासक थे। हालाँकि, वोडेयार राजा ब्रिटिश नियंत्रण में एक कठपुतली शासक के रूप में कार्य करता था।
युद्ध कितने समय तक चला?
श्रीरंगपट्टनम पर अंतिम आक्रमण एक दिन तक चला, 4 मई, 1799 को, हालांकि हमले से पहले ब्रिटिश सेना द्वारा शहर की घेराबंदी लगभग एक महीने से चल रही थी।

क्या टीपू सुल्तान की हार विश्वासघात का परिणाम थी?

हाँ, विश्वासघात ने टीपू सुल्तान की हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1. आंतरिक विश्वासघात
टीपू सुल्तान के दरबार में कई प्रमुख कमांडरों और रईसों पर गुप्त रूप से अंग्रेजों के साथ सहयोग करने का संदेह था। इस विश्वासघात की सही सीमा पर बहस जारी है, लेकिन यह स्पष्ट है कि घेराबंदी के दौरान उनके कुछ भरोसेमंद सहयोगी उनका प्रभावी ढंग से समर्थन करने में विफल रहे।
2. अंग्रेजों के साथ दलबदल
अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान के प्रशासन के भीतर असंतुष्ट तत्वों के माध्यम से गठबंधन बनाए और खुफिया जानकारी हासिल की। इन विश्वासघातों ने मैसूर की सुरक्षा को कमजोर कर दिया और अंग्रेजों को रणनीतिक लाभ पहुँचाया।
श्रीरंगपट्टनम की लड़ाई भारतीय इतिहास में एक ऐतिहासिक घटना बनी हुई है, जो एक उग्र भारतीय प्रतिरोध नेता के पतन और उपमहाद्वीप में ब्रिटिश साम्राज्यवादी शक्ति के बढ़ते प्रभुत्व का प्रतीक है।
श्रीरंगपट्टनम कहाँ है?
श्रीरंगपट्टनम (जिसे श्रीरंगपट्टनम भी लिखा जाता है) एक ऐतिहासिक शहर है जो वर्तमान में भारत के कर्नाटक के मांड्या जिले में स्थित है। यह मैसूरु (मैसूर) से लगभग 15 किलोमीटर (9 मील) उत्तर-पूर्व में और राज्य की राजधानी बेंगलु से लगभग 125 किलोमीटर (78 मील) दक्षिण-पश्चिम में स्थित है।
भौगोलिक महत्व
1. द्वीप स्थान
श्रीरंगपट्टनम कावेरी नदी द्वारा निर्मित एक द्वीप पर स्थित है, जो शहर को घेरती है और इसे प्राकृतिक रक्षात्मक अवरोध प्रदान करती है। इसने इसे टीपू सुल्तान और उनके पिता हैदर अली के लिए एक रणनीतिक स्थान बना दिया।
2. ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
शहर का नाम रंगनाथस्वामी मंदिर के नाम पर रखा गया है, जो भगवान विष्णु को समर्पित एक प्रतिष्ठित हिंदू मंदिर है। – श्रीरंगपट्टनम हैदर अली और टीपू सुल्तान के अधीन मैसूर साम्राज्य की राजधानी थी। आज, श्रीरंगपट्टनम एक प्रमुख पर्यटन स्थल है, जो अपने ऐतिहासिक स्मारकों, मंदिरों और टीपू सुल्तान के शासनकाल के अवशेषों, जैसे कि उनके ग्रीष्मकालीन महल (दरिया दौलत बाग) और गुम्बज (उनकी समाधि) के लिए जाना जाता है।
श्रीरंगपट्टनम का इतिहास
श्रीरंगपट्टनम का इतिहास समृद्ध और बहुआयामी है, जो इसके रणनीतिक स्थान, धार्मिक महत्व और इसे नियंत्रित करने वाले शासकों द्वारा आकार लेता है। वर्तमान कर्नाटक में कावेरी नदी के एक द्वीप पर स्थित, श्रीरंगपट्टनम सदियों से शक्ति, संस्कृति और भक्ति का केंद्र रहा है।
1. प्रारंभिक इतिहास
– उत्पत्ति और धार्मिक महत्व
शहर का नाम रंगनाथस्वामी मंदिर से लिया गया है, जो भगवान रंगनाथ (भगवान विष्णु का लेटा हुआ रूप) को समर्पित है। माना जाता है कि यह मंदिर 9वीं शताब्दी ई. का है, जिसका निर्माण गंगा राजवंश के शासनकाल के दौरान हुआ था। इसके धार्मिक महत्व ने श्रीरंगपट्टनम को एक प्रमुख तीर्थस्थल बना दिया।
– चोल और होयसल शासन
चोलों और बाद में होयसल ने इस क्षेत्र पर शासन किया, जिससे मंदिर के विकास में योगदान मिला। होयसल अपने वास्तुशिल्प योगदान के लिए जाने जाते थे, जो मंदिर संरचनाओं में स्पष्ट है।
2. विजयनगर काल (14वीं-16वीं शताब्दी)
विजयनगर साम्राज्य के उदय के दौरान, श्रीरंगपट्टनम एक महत्वपूर्ण सैन्य और सांस्कृतिक केंद्र बन गया। विजयनगर के शासकों ने कावेरी नदी पर इसके रणनीतिक स्थान को पहचानते हुए शहर को मजबूत किया। उन्होंने मंदिर गतिविधियों को भी बढ़ावा दिया, जिससे शहर की धार्मिक प्रमुखता बढ़ गई।
3. मैसूर साम्राज्य और हैदर अली (16वीं-18वीं शताब्दी)
– वोडेयार राजवंश
16वीं शताब्दी के मध्य में, श्रीरंगपट्टनम मैसूर साम्राज्य का हिस्सा बन गया, जिस पर वोडेयार राजवंश का शासन था। 1610 में, राजा राजा वोडेयार प् ने अपनी राजधानी मैसूर से श्रीरंगपट्टनम स्थानांतरित कर दी, जिससे यह मैसूर की शक्ति का केंद्र बन गया।
– हैदर अली का उदय
18वीं शताब्दी के मध्य तक, वोडेयार दरबार के एक सैन्य कमांडर हैदर अली ने सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया और मैसूर के वास्तविक शासक बन गए। उन्होंने किलेबंदी और शस्त्रागार का निर्माण करके श्रीरंगपट्टनम को एक सैन्य गढ़ के रूप में और मजबूत किया।
4. टीपू सुल्तान का काल (1782-1799)
हैदर अली के बेटे टीपू सुल्तान ने श्रीरंगपट्टनम को उसके शिखर पर पहुँचाया, इसे एक अच्छी तरह से किलेबंद राजधानी और ब्रिटिश औपनिवेशिक महत्वाकांक्षाओं के खिलाफ प्रतिरोध का केंद्र बना दिया।
प्रशासन
टीपू ने प्रशासनिक, सैन्य और आर्थिक सुधार पेश किए, जिससे श्रीरंगपट्टनम उनकी प्रगतिशील नीतियों का केंद्र बन गया।
– वास्तुशिल्प योगदान
उन्होंने कई इमारतें बनवाईं, जिनमें दरिया दौलत बाग (उनका ग्रीष्मकालीन महल), गुंबज (उनका मकबरा) और कई मस्जिदें शामिल हैं, जो उनकी दूरदर्शिता और वास्तुकला संरक्षण को दर्शाती हैं।
– सैन्य अड्डा
यह शहर एंग्लो-मैसूर युद्धों के दौरान एक महत्वपूर्ण रणनीतिक स्थान बन गया, जो टीपू सुल्तान के संचालन के आधार के रूप में कार्य करता था।
5. एंग्लो-मैसूर युद्ध और श्रीरंगपट्टनम का पतन
श्रीरंगपट्टनम ने मैसूर साम्राज्य और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच एंग्लो-मैसूर युद्धों (1767-1799) में एक केंद्रीय भूमिका निभाई।
– चौथा एंग्लो-मैसूर युद्ध (1799)
अंग्रेजों ने श्रीरंगपट्टनम की घेराबंदी की, जिसकी परिणति 4 मई, 1799 को श्रीरंगपट्टनम की लड़ाई में हुई। टीपू सुल्तान मारा गया और किला अंग्रेजों के हाथ में चला गया। इससे मैसूर की स्वतंत्रता समाप्त हो गई और यह क्षेत्र अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गया।
– मैसूर का विभाजन
अंग्रेजों ने कठपुतली शासकों के रूप में वोडेयार राजवंश को फिर से स्थापित किया और श्रीरंगपट्टनम ने राजधानी के रूप में अपना दर्जा खो दिया, वोडेयार वापस मैसूर चले गए।
– प्रमुखता में गिरावट
अंग्रेजों की जीत के बाद, श्रीरंगपट्टनम ने धीरे-धीरे अपना राजनीतिक महत्व खो दिया, लेकिन यह ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का स्थल बना रहा।
– पर्यटन केंद्र आज, श्रीरंगपट्टनम एक प्रमुख पर्यटन स्थल है, जो अपने ऐतिहासिक स्थलों जैसे रंगनाथस्वामी मंदिर, टीपू सुल्तान के महल, गुम्बज और किले के अवशेषों के लिए जाना जाता है।
ऐतिहासिक महत्व के प्रमुख आकर्षण
1. रंगनाथस्वामी मंदिर
भगवान विष्णु को समर्पित एक पवित्र तीर्थ स्थल।
2. दरिया दौलत बाग
टीपू सुल्तान का ग्रीष्मकालीन महल, जिसमें इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का प्रदर्शन किया गया है।
3. गुम्बज
टीपू सुल्तान और उनके पिता हैदर अली का मकबरा।
4. श्रीरंगपट्टनम किला
अपनी मजबूत किलेबंदी, वाटर गेट और उस स्थान के लिए जाना जाता है जहाँ टीपू सुल्तान की मृत्यु हुई थी।
5. ओबिलिस्क
ब्रिटिश विजय के स्थान को चिह्नित करने वाला एक स्मारक।
श्रीरंगपट्टनम का महत्व
श्रीरंगपट्टनम भारतीय इतिहास में धार्मिक भक्ति, सैन्य रणनीति और उपनिवेशवाद के खिलाफ प्रतिरोध के स्थल के रूप में एक अद्वितीय स्थान रखता है। प्राचीन राजवंशों से लेकर टीपू सुल्तान की भयंकर रक्षा तक इसका समृद्ध इतिहास इसे लचीलापन और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक बनाता है।

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